ऋग्वेद में वर्णित अग्नि सूक्त में अग्नि का महत्व
ऋग्वेद में वर्णित अग्नि सूक्त में अग्नि का महत्व
अग्नि तीन प्रकार की बताई गई है
1 भौम - जो तृष्ण, काष्ठ आदि के जलने से उत्पन्न होती है
2 दिव्य- जो आकाश में बिजली से उत्पन्न होती है।
3 उदर या जठर- जो पित्त रूप से नाभि के ऊपर और हृदय के नीचे रहकर भोजन को पचाती है।
इसी प्रकार कर्मकांङ में अग्नि तीन प्रकार का मानी गई है
1 गार्हपत्य
2 आहवनीय
3 दाक्षिणात्य।
प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मंत्रों के द्वारा इसी की महत्ता को स्पष्ट करते हुए अनेक मंत्रों में अग्नि देव के महत्व को समझाते हुए अग्नि को देवता स्वरूप मानकर इसकी स्तुति की है।
वैदिक ऋषि जानते थे की संपूर्ण सृष्टि के संचालन में अग्नि का महत्वपूर्ण स्थान है अतः इसकी महत्ता को सिद्ध करने के लिए इसकों देवता की उपाधि के रुप में प्रस्तुत किया, ताकि सभी लोग इस तत्व के महत्व को समझ सके।
वैदिक ऋषियों ने प्राकृतिक वस्तुओं को सफलतापूर्वक समझाने के लिए, उनकी देखरेख करने के लिए भिन्न-भिन्न देवताओं की कल्पना की।
प्राचीन समय में लेखन क्रिया इतनी विकसित नहीं होने के कारण आर्य लोग स्तुतिपरक मंत्रों के द्वारा इन देवताओं की महत्ता के विषय में सभी को परिचित कराते थें । मौखिक अभिव्यक्ति के द्वारा मंत्रों का उच्चारण करके इनके महत्व को प्रत्येक जन -जन को समझाते थे ताकि कोई भी इन तत्वों का दुरुपयोग ना करें।
ऋषियों का उद्देश्य इन तत्वों में देवता की कल्पना करके इनका उपयोग सीमित और सबके हित के लिए प्रेरित करना रहा है ।
- अग्नि ऋग्वेद संहिता के प्रथम मंडल का प्रथम सूक्त है।
- अग्नि शब्द संस्कृत में अग् धातु से बना है।
- ऋग्वेद संहिता में अग्नि की 200 सूक्तों में स्तुति की गई है।
- इन सूक्तों में गायत्री छंद का प्रयोग किया गया है, गायत्री छन्द में 24 अक्षरों होते है इसमें 8-8 अक्षरों के तीन पाद होते है । जैसेः-
- अग्निमीले पुरोहितम् - प्रथम पाद
- यज्ञस्य देवमृत्विजम् - द्वितीय पाद
- होतारं रत्नधातमम् - तृतीय पाद
- इस सूक्त के ऋषि मधुच्छंदा है जिन्हें महर्षि विश्वामित्र का 51 वां पुत्र माना जाता है ।
- ऋग्वेद में अग्नि को गृहपति, यज्ञपति, पुरोहित ऐसी संज्ञाओं से ज्ञापित किया गया है ।
- सभी देवताओं को द्रव्य पदार्थ अग्नि के द्वारा ही प्राप्त होता है तात्पर्य यह है कि द्रव्य पदार्थों को अग्नि देवताओं तक पहुँचा देते हैं इसलिए इसे दूत वणीमहे दूत कहा गया है।
- अग्नि सूक्त में मंत्रों की संख्या है - 9
- अग्नि सूक्त से संबंधित वेद है - ऋग्वेद
- अग्नि सूक्त का देवता है - अग्नि
- पृथ्वी स्थानीय देवता है - अग्नि
- वैदिक आर्यों का सर्वाधिक पवित्र देवता - अग्नि
- इंद्र के बाद स्थान है - - अग्नि का
- अग्नि का मुख्य गुण है - प्रकाश
- अग्नि का प्रिय पेय है - घृत
- अग्नि की उत्पत्ति हुई है - विराट् पुरुष के मुख से ( ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के अनुसार ऋग्वेद 10/90 पुरुष सूक्त मन्त्र संख्या 13)
- अग्नि दिन में भोजन करता है - तीन बार
- अग्नि का पथ है - कृष्ण वर्ण
- अग्नि का घनिष्ठ संबंध है - इंद्र के साथ
- अग्नि का यमल भाई है - इंद्र
- अग्नि का भाई है - वरुण
- अग्नि के पिता है - द्याैः
- अग्नि को संतान कहा गया है - 10 युवतियों का
- 10 युवतियां है - हाथ की 10 अंगुलियां
- अग्नि कहा गया है - सहस्त्र पुत्र (सहस का अर्थ है शक्ति)
- अग्नि देव यज्ञ की हवी को ग्रहण करते हैं - स्वयं
- इसके साथ ही हवी को पहुंचाते हैं - देवताओं के पास
- देवताओं को यज्ञ स्थल पर लाते हैं - अग्नि देव
- अग्नि प्रतिदिन के तथा प्रत्येक घर के हैं - अतिथि
- ऋग्वेद का प्रारंभिक सूक्त है - अग्नि सूक्त
- यास्क ने अग्नि का निर्वाचन किया है-
- अग्रणीः भवति। (अर्थात् अग्नि अग्रणी है।)
- अग्रं यज्ञेषु प्रणीयते। (अर्थात् यज्ञों में सर्वप्रथम लाये जाते है)
- अंङ्ग नयति सन्नममानः । (अर्थात् किसी भी वस्तु के मिलने पर उसे अपना अंग बना लेते है।)
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